संग्रहालयों का भी शहर है मैसूर

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  • Monday 31 August 2009
  • by
  • श्रीकांत पाराशर
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  • मैसूर। महलों के शहर के नाम से मशहूर मैसूर में बीसियों संग्रहालय इस शहर की धरोहरों को संजोने का काम कर रहे हैं। इन संग्रहालयों में विशेष हैं श्री जयचामराजेन्द्र संग्रहालय तथा कला दीर्घा, प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय, मैसूर विश्वविद्यालय लोककथा संग्र्रहालय, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, ओरियेंटल रिसर्च इंस्टीटयूट (ओआरआई), रेलवे संग्रहालय, मैसूर महल तथा वाडेयार राजघराने के वर्तमान उत्तराधिकारी श्रीकांतदत्त नरसिंहराज वाडेयार का निजी संग्रहालय, अपने-आप में अद्वितीय संग्रहालय 'विश्व', जेएसएस महाविद्यापीठ संग्रहालय (सुत्तुर)। विशेषज्ञों का कहना है कि इन सभी संग्रहालयों में काफी प्रभावशाली ढंग से इतिहास को संजोकर रखने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन इस समय जरूरत इस बात की है कि इन संग्रहालयों में रखी समृध्द धरोहरों कों भी मैसूर आने वाले पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय बनाया जाए। इसके लिए पर्यटन विभाग को प्रयास करने की जरूरत है। इन धरोहरों की जानकारी आम जनता को मिलने से मैसूर में पर्यटन गतिविधियों को अधिक प्रोत्साहित किया जा सकता है।
    मैसूर के विश्व प्रसिध्द जगमोहन महल में स्थित जयचामराजेन्द्र संग्रहालय तथा कला दीर्घा को आम जनता के लिए वर्ष 1955 में खोला गया था। इस संग्रहालय को तत्कालीन वाडेयार शासक जयचामराज वाडेयार ने ही जनता को समर्पित किया था। इसमें ऐतिहासिक धरोहरों का बड़ा खजाना मौजूद है जो मैसूर के इतिहास के साथ ही शहर की सभ्यता-संस्कृति की पहचान बन चुकाहै। इस संग्रहालय का दौरा करने वालों को मैसूर के साथ ही दुनिया के कई देशों से लाकर रखी गई खास चीजें आकर्षित करती हैं। इनमें फ्रान्स से लाई गई संगीतमय घड़ी कलेंडर प्रमुख है। इसमें लोगों को दिनांक तथा समय अलग-अलग पैनलों पर दिखता है और साथ ही संगीत का भी आनंद मिलता है। माना जाता है कि यह घड़ी कलेंडर पूरे देश में एक ही है। संग्रहालय में वाडेयार राजघराने के सदस्यों द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स का एक बड़ा खजाना है। इसमें वाडेयार शासकों द्वारा समय-समय पर प्रचलित सिक्कों तथा उनके द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले परिधानों का भी अच्छा संकलन है। इस संग्रहालय भवन को देखकर भी वाडेयार राजघराने के शासकों के रुतबे का अंदाजा लगाया जा सकता है।
    केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के तत्वावधान में स्थापित किए जाने वाले क्षेत्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय (आरएमएनएच) की स्थापना मैसूर में वर्ष 1988 में हुई थी तथा इस संग्रहालय को वर्ष 1995 में आम जनता के लिए खोला गया था। इसमें दर्शकों के लिए एक गुफानुमा संरचना बनी हुई है। इसी गुफा से गुजरते हुए दर्शकों के सामने जीवन के शुरुआत की रोचक कहानी परत-दर-परत खुलती जाती है। इसके साथ ही इस गुफा में लोगों को चार्ल्स डार्विन के जीवन के विकास का सिध्दान्त भी समझ में आ जाता है। यह पूरे देश में दृष्टिबाधितों के लिए संग्रहालय बाग का काम करने वाला पहला संग्रहालय है। इसके साथ ही इसे जीवन विज्ञान का अध्ययन करने के लिए एक बेहतरीन संसाधन माना जाता है। खास तौर पर दृष्टिबाधित छात्र-छात्राओं को इस संग्रहालय में विभिन्न पेड़-पौधों पर ब्रेल लिपि की मदद से लिखे उनके नाम पढ़कर तथा उनकी विशेष सुगंधों से उनको पहचानने की सुविधा मिलती है। वे पेड़-पौधों की पत्तियों का स्वाद चखकर उन्हें याद रख सकते हैं। इस बगीचे में रोमांचकारी खेलों की भी व्यवस्था की गई है।
    लोककथा संग्रहालय में 15 हजार से अधिक लोककथाओं तथा पुरातात्विक महत्व की चीजों का संकलन किया गया है। यह मैसूर विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित है। इसे दक्षिण-पूर्वी एशिया का सबसे बड़ा संग्रहालय माना जाता है। इसमें गुजरे हुए जमाने की पहचान करने का अवसर मिलता है। उल्लेखनीय है कि जिस जयलक्ष्मीविलास महल में यह संग्रहालय स्थित है, वह काफी पुराना होने के कारण ध्वस्त होने की कगार पर पहुंच गया था। हाल ही में इस भवन की मरम्मत तथा नवनिर्माण भी किया गया है। इस कार्य में 2 करोड़ रुपए व्यय किए गए हैं।
    वर्ष 1891 में मैसूर के शासक चामराज वाडेयार ने भी यहां एक संग्रहालय की स्थापना की थी। इसे ओआरआई के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने करवाई थी। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य मैसूर के विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखी जाने वाली उत्कृष्ट पुस्तकों का संरक्षणकरना तथा अगली पीढ़ी के हाथों तक उन्हें सुरक्षित पहुंचाना था। इस समय इस संग्रहालय में 60 हजार से अधिक पांडुलिपियों तथा 30 हजार से अधिक उत्कृषट स्तर की किताबों का संग्रह उपलब्ध है। इस संग्रहालय की तरफ प्रत्येक वर्ष विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में आकर्षित होते हैं।
    शहर के रेलवे संग्रहालय को भी मैसूर के संग्रहालयों में काफी महत्वपूर्ण स्थान हासिल है। इसकी स्थापना वर्ष 1979 में की गई। इसमें वर्ष 1881 से 1951 तक संचालित मैसूर राज्य रेलवे के दिनों की यादें ताजी हो जाती हैं। इसमें रखी गई यादगार वस्तुएं पूर्व में कभी मैसूर राजमहल की शान में चार चांद लगाती थीं। शहर के स्कूलों में कभी विशेष किसी कारण से छुट्टी हो जाए तो स्कूली छात्र-छात्राओं को तत्काल रेलवे संग्रहालय की तरफ भागते हुए देखा जाता है। इसमें 19 वीं शताब्दी के समय से लेकर अब तक रेलवे के क्रमिक विकास की वर्गीकृत जानकारी मिल जाती है। लोकोमोटिव वाष्प इंजनों के कई मॉडल भी इस संग्रहालय की शान बढ़ाते हैं।

    2 comments:

    समयचक्र said...

    बहुत जानकरी पूर्ण आलेख प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.

    राज भाटिय़ा said...

    बहुत सुंदर ओर अच्छी जानकारी दी आप ने .
    धन्यवाद