पहले चोरी फिर सीनाजोरी

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  • Friday 20 November 2009
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  • श्रीकांत पाराशर
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  • आजकल हमारे देश में अगर कुछ सौ करोड़ का घोटाला हो तो वह घटना समाचार के योग्य नहीं मानी जाती इसलिए जिनको सुर्खियों में आना है वे हजारों करोड़ के घोटाले से जुड़ते हैं। कुछ वर्ष पहले तक यह बात नहीं थी, इसीलिए 100 करोड़ से भी कम के कथित बोफोर्स घोटाले ने देश को हिला कर रख दिया था और आज दो सौ, पांच सौ करोड़ के घोटाले पर तो कोई कान भी नहीं लगाता। बोफोर्स घोटाला कुल जितनी राशि का बताया गया उससे पांच गुणा राशि तो यह पता करने में खर्च हो गई कि वास्तव में घोटाला हुआ भी था या नहीं और हुआ भी था तो वह रकम गई किसी जेब में? बार बार मुख्य आरोपी के रूप में क्वात्रोच्चि का नाम सुर्खियों में आता रहा और अपने आपको महाशक्ति की दौड़ में अग्रिम पंक्ति में बताने वाला भारत उस क्वात्रोच्चि का बाल भी बांका नहीं कर सका। उल्टे जब-तब वही भारत को धमकाता रहता है।
    इसके बाद थोड़ा बड़ा, चारा घोटाला हुआ जिसमें लालूप्रसाद यादव का नाम उछला। नाम उछला तो इतना उछला कि पूछो मत। यों लग रहा था मानो सीबीआई अभी लालूप्रसाद यादव से 400-500 करोड़ रुपए उगलवा लेगी जो मानो उन्होंने किसी चारे के ढेर में छिपा रखे हैं। खोदा पहाड़, निकली चुहिया। उस चारा घोटाले के बाद लालू यादव ज्यादा पोपुलर हो गए। आज भी वे बनियान पहने, अपनी कुर्सी पर पैर ऊपर कर, उकड़ू बैठे देश के बड़े से बड़े नेता पर टिप्पणी करना अपना अधिकार समझते हैं। चारा घोटाले पर अगर कोई पत्रकार उनसे अब एक भी प्रश्न पूछ ले तो उसको वे धकिया देते हैं, गाली भी देने से नहीं चूकते। आज देश में कोई भी ताजा घटना घट जाए, उस पर टिप्पणी लेने के लिए मीडिया वाले सबसे पहले लालू यादव के पास जाते हैं। मान लीजिए चीन के प्रधानमंत्री ने कोई गूढ कूटनीतिक वक्तव्य दिया तो कैमरा लालू यादव के घर पहुंच जाता है, उनकी खास प्रतिक्रिया जानने के लिए, भले ही उन्हें यह भी मालूम नहीं हो कि चीन का प्रधानमंत्री आजकल कौन है। इतने ज्यादा पोपुलर हो गए चारा घोटाले के बाद लालू यादव।
    तीन हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के स्टांप पेपर घोटाले के बारे में आप क्या कहेंगे? मुख्य आरोपी जिसे बताया जा रहा है वह है तेलगी, जिस पर देशभर की अनेक अदालतों में मुकदमे चल रहे हैं। रह रह कर फैसले भी आ रहे हैं। अगर सभी फैसलों की सजा की अवधि को जोड़ कर हिसाब लगाया जाए तो सजा पूरी काटने के लिए तेलगी को कई जन्म लेने पड़ेंगे। तेलगी अभी जेल में है। बीच बीच में वह शिकायत करता रहता है कि उसे खाना उसकी पसंद के मुताबिक नहीं मिल रहा है। अच्छा खाना खाने पर भी जब वह बीमार होता है तो सरकारी खर्च पर इलाज की भी व्यवस्था है। यह हमारे ही देश में संभव है कि चोर पहले चोरी करता है और बाद में कानून को ही धौंस दिखाता है। इसे ही चोरी और सीना जोरी कहते हैं। हमारी कानून व्यवस्था ऐसी है जहां सजा पाना इतना आसान नहीं है। अगर आदमी अपराध करते हुए रंगे हाथों भी पकड़ लिया जाए तो वह सहज ही कह सकता है कि, 'वकील से विचार विमर्श के बाद टिप्पणी करूंगा' या यह भी कह सकता है कि 'मुझे फंसाया जा रहा है और जो लोग फंसा रहे हैं उनका नाम भी समय आने पर उजागर करूंगा।' वह समय कभी आता भी है क्या, पता नहीं।
    अभी अभी कथित रूप से चार हजार करोड़ (कभी ढाई हजार बताया जाता है) का जो घोटाला झारखंड में उजागर हुआ है उसमें वहां के पूर्व मुख्यमंत्री मधुकोड़ा का नाम सामने आया है। वे कुछ दिन तो एक शब्द नहीं बोले, मानो सांप सूंघ गया हो और अब छाती ठोककर चुनावी सभाओं में भाषण दे रहे हैं कि उन्हें कुछ लोग मटियामेट करने के लिए फंसा रहे हैं। जिस आदमी ने हजारों करोड़ का घपला किया हो उसे कोई कैसे मटिया मेट कर सकता है? मधुकोड़ा कह रहे हैं कि उनको फंसाने वालों पर वे मानहानि का मुकदमा ठोंकेंगे। लीजिए, कर लीजिए बात।
    मजे की बात यह है कि हमारे देश में आम नागरिक अगर 50 हजार रुपए से एक रुपया भी ज्यादा एक साथ जमा कराना चाहे तो कोई भी बैंक पहले उसका पेन नम्बर पूछेगा तथा और भी दो-पांच सवाल कर ही लेगा परन्तु कहते हैं कि मधुकोड़ा और उनके साथियों ने एक ही बैंक में 400 करोड़ से ज्यादा की राशि एक मुश्त जमा करा डाली। किसी ने कुछ नहीं पूछा। बैंक भी गरीबों के दुश्मन हैं। करोड़ों में कोई जमा कराए तो कुछ नहीं पूछा जाता। राशि इतनी बड़ी हो तभी तो जमा कराने वाले को और जमा करने वाले को मजा आएगा। आप एक मामूली सी 51 हजार रुपए की राशि जमा कराने जाएंगे तो फजीयत नहीं करवाएंगे तो और क्या होगा? दो सवाल कोई भी करेगा। करोड़ों लेकर जाइए बैंक और जमा कराइए, देखिए किसकी ताकत है कोई प्रश्न पूछने की? बैंक भी औकात देखता है।
    जैसे जैसे हमारे नेता अपनी औकात बढ़ाते जाते हैं, हम लोग गर्व महसूस करते हैं। हम कह सकते हैं कि हमारे देश में बहुत संभावनाएं हैं। जो लोग समझते हैं कि देश गरीब है, वह गलत समझते हैं। जहां गरीबी हो वहां हजारों करोड़ के घोटाले कैसे हो सकते हैं?

    5 comments:

    aarya said...

    श्रीकांत जी
    सादर वन्दे!
    बहुत ही प्रासंगिक पोस्ट!
    भाई जी इसमे गलती हमारी भी है क्योंकि हम अपनी परेशानियों को बहाना बनाकर इन बातों से दूर रहने की शिक्षा देते हैं जबकि हमारी सभी परेशानियों का कारण इनसे ही जुड़ा होता है, १०० करोण की जानता का १% भी संसद को घेर ले तो इन नेताओं की मटियामेट हो जाएगी औरआधी समस्याएं उसी दिन सुलझ जाएँगी, लेकिन हम तो मराठी हैं, तमिल हैं, माओवादी हैं, मुशालमन है, हिन्दू है .......... भारतीय तो कोई है ही नहीं... यैसे में बस झेलो, गाँधी के तीन बन्दर बनो, और भविष्य को नपुंसक बनाओ..........
    रत्नेश त्रिपाठी

    चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

    जिस देश में देशद्रोही खुलेआम फिर सकते है, लोकतंत्र की इमारत पर बम फेंक कर भी वर्षों जीवित है, उस देश में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा हो सकता है भला? हमें खेद है कि हम केवल ८७वें पायदान पर हैं विश्व के भ्रष्ट देशों में......हमें तो सब से ऊपर रहना चाहिए था:)

    राज भाटिय़ा said...

    भाई हम ऊपर की दोनो टिपण्णियो से सहमत है, अगर जनता आपस मै लडना बन्द करे ओर पकडे इन हरामी नेतओ को तो ़देखो....केसे करते है यह घोटाला

    Smart Indian said...

    श्रीकांत जी,
    इस स्थिति को मैं भारत-विरोधाभास (India Paradox) कहता हूँ. स्थिति बहुत दुखद है. जिस देश में सांसद का चुनाव लड़ने वाला हर उम्मेदवार करोडपति है वहां क़र्ज़ में डूबे बुनकर और किसान आत्महत्या कर के भूखे बच्चे छोड़ जाते हैं. जो खर्च वहां कर सकते हैं उन माध्यम-उच्च वर्ग के लोगों के लिए उच्च शिक्षा कौड़ियों के मोल मिलती है मगर गरीब के बच्चे के लिए नगरपालिका के प्राथमिक विद्यालय की हालत ऐसी है कि शायद उन्हें भी अपने बच्चे वहां भेजते में डर लगता है. जिस देश का वित्त-मत्री वित्त-घोटाले वाले बी रत्नाकर के ग्रोमोर में निवेशक था और आर्थिक सौदों में पारदर्शिता लाने के बजाय हर चेक पर फीस लगाकर अपरोक्ष रूप से अन्दर-द-टेबल लेन-देन को बढ़ावा दे रहा था वहां यह सब चीज़ें किसे चौंकायेंगी?

    डॉ० डंडा लखनवी said...

    लोग जो चिकने घड़े हैं।
    लग रहा वो ही बड़े हैं॥

    आप हैं यदि सदाचारी-
    पंक्ति में पीछे खड़े हैं ?