सिखों के धार्मिक कार्यक्रम गुरु-ता गद्दी की तैयारियां जोरों पर


बीदर, कर्नाटक।  सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब के 300 वें प्रकाशोत्सव के मौके पर यहां मनाए जाने वाले विशेष कार्यक्रम गुरु-ता गद्दी (गुरु का स्थान) में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह सहित देश भर से पांच लाख से अधिक सिख श्रध्दालुओं के पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। यह कार्यक्रम 28 अक्टूबर से 7 नवंबर तक आयोजित किया जाएगा।

गुरु नानक झीरा फाउंडेशन के सूत्रों ने आज बताया कि बीदर में आयोजित होने वाले इस धार्मिक कार्यक्रम के पहले महाराष्ट्र के नांदेड़ में एक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। यह कार्यक्रम सचखंड श्री हजूर अबचैनगर साहिब गुरुद्वारा की तरफ से आयोजित किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि सिखों के प्रथम धर्मगुरु नानक तथा अंतिम धर्मगुरु गोविंद सिंह ने भी नांदेड़ की यात्रा की थी। इसी कारण से नांदेड़ को सिख धर्मानुयायी अपना पवित्र तीर्थ स्थल मानते रहे हैं।

नांदेड़ में आयोजित किए जा रहे कार्यक्रम में विश्व भर के सभी देशों से लगभग 50 लाख सिख श्रध्दालुआें के भाग लेने की उम्मीद जताई जा रही है। यह श्रध्दालु गुरु ग्रंथ साहिब के प्रकाशोत्सव के मौके पर नांदेड़ में मत्था टेकने के लिए आएंगे। वहां गुरु की प्रार्थना करने के बाद यह श्रध्दालु बीदर आकर 'गुरु नानक झीरा गुरुद्वारा' में भी पूजा-अर्चना करेंगे। माना जाता है कि बीदर में स्थित इस गुरुद्वारे में स्वयं गुरु गोविंद सिंह के चरण पड़े थे। इस पवित्र गुरुद्वारे के सूत्रों ने गुरु-ता गद्दी  के आयोजन का महत्व बताते हुए कहा कि गुरु गोविंद सिंह ने अत्याचारी मुगल शासकों के विरुध्द अपनी लड़ाई में मराठा शक्ति की मदद मांगने के लिए इस गुरुद्वारे में मराठा क्षत्रपों के साथ एक बैठक और मंत्रणा की थी। दुर्भाग्य से गुरु गोविंद सिंह अपने ही समर्थकों के हमले के शिकार हो गए। अक्टूबर 1708 में अपने अंतिम दिनों के दौरान उन्होंने आदेश दिया था कि सिख धर्मानुयायी गुरु ग्रंथ साहिब के उपदेशों को ही अपने गुरु के कथनों के रूप में मान्यता दें तथा किसी भी जीवित व्यक्ति को भविष्य में गुरु नहीं माना जाए। गुरु ग्रंथ साहिब को इस तरह मिली गुरु की मान्यता को स्मरण करते हुए गुरु-ता गद्दी उत्सव मनाया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि गुरु नानक झीरा गुरुद्वारे में एक मीठे पानी का सोता मौजूद है जो श्रध्दालुओं द्वारा काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस गुरुद्वारे में आने वाले सिख श्रध्दालु इसके पानी को पवित्र मानते हैं तथा यह सोता पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से बना हुआ है। सिर्फ गुरु नानक झीरा गुरुद्वारा ही नहीं, बीदर शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जनवादा गांव में भी सिखों का एक अन्य पवित्र गुरुद्वारा स्थित है। बताया जाता है कि जब गुरु गोविंद सिंह पंजाब से महाराष्ट्र के नांदेड़ की यात्रा पर पहुंचे थे तो उनके साथ माई भागोजी भी थीं। जनवादा गांव में ठहरने के दौरान माई भागोजी ने सिख गुरुओं के उपदेशों का प्रचार-प्रसार किया था। वह सिख धर्म की पवित्रता के बारे में भी वहां के लोगों को बताया करती थीं। उनकी याद में जनवादा गांव में एक गुरुद्वारा बनाया गया है। इसका नाम भी माई भागोजी गुरुद्वारा ही है। इसका प्रबंधन बीदर के गुरु नानक झीरा गुरुद्वारा की गुरुद्वारा प्रबंधक समिति द्वारा किया जाता है। इस गुरुद्वारे में वह स्थान विशेष तौर पर संरक्षित तथा विकसित किया गया है जहां माई भागोजी तप में लीन रहा करती थीं। इसे 'तपस्थल' कहा जाता है।

गुरु ग्रंथ साहिब के 300 वें प्रकाशोत्सव के मौके पर आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रम गुरु-ता गद्दी के विशेष अधिकारी मुनेश्वर ने कहा कि इस धार्मिक कार्यक्रम के दौरान गुरु नानक झीरा गुरुद्वारे में प्रवेश के लिए सभी रास्तों पर बेरोकटोक वाहनों का संचालन सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। यहां आने वाले तीर्थयात्रियों के रात्रि ठहराव के लिए माई भागोजी गुरुद्वारे में खास व्यवस्था की गई है। इस कार्यक्रम की तैयारियों का जायजा लेने के लिए केन्द्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल 18 अक्टूबर को बीदर का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने इस महा आयोजन की तैयारियों की समीक्षा भी की है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि गुरु-ता गद्दी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आने वाले 50 हजार श्रध्दालुओं के लिए 1000 टेंटों का इंतजाम किया गया है तथा शहर के कई निजी स्कूलों और कॉलेजों से भी सहयोग मांगा गया है।श्रध्दालुओं को इन स्कूलों तथा कॉलेजों में भी ठहराया जाएगा। इस कार्यक्रम के लिए पूरे बीदर शहर को नए स्वरूप में सजाया गया है। मुख्य शहर से गुरु नानक झीरा गुरुद्वारे की तरफ जाने वाली सभी प्रमुख सड़कों का चौड़ीकरण किया गया है तथा कई सड़कों का निर्माण नए सिरे से करवाया गया है। गुरुद्वारा परिसर के अंदर ही एक 50 बिस्तरों वाले अस्पताल का निर्माण भी करवाया गया है। श्रध्दालुओं को जरूरत पड़ने पर इस अस्पताल में उन्हें विशेषज्ञ चिकित्सकों की सेवाएं भी मिल सकेंगी।

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''ब्लॉग टॉक''

कर्नाटक में 30 वर्षों से रहने वालों द्वारा प्रकाशित, कर्नाटक के एक मात्र हिन्दी दैनिक, जो कि किसी अन्य प्रदेश के अखबार का स्थानीय संस्करण नहीं बल्कि बेंगलूर ही जिसका मुख्यालय है, ऐसे 'दक्षिण भारत राष्ट्रमत' दैनिक में भी संपादकीय पृष्ठ पर ''ब्लॉग टॉक'' स्तंभ के अंतर्गत रोज दो चुनिंदा विचार, ब्लॉग लेखकों के शामिल किए जाते हैं। उदाहरण के रूप में 11 अक्टूबर के अंक में प्रकाशित इस स्तंभ की फोटो प्रति यहां दी जा रही है 








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ब्लॉग लेखकों के विचारों का सदुपयोग

कर्नाटक में 30 वर्षों से रहने वालों द्वारा प्रकाशित, कर्नाटक के एक मात्र हिन्दी दैनिक, जो कि किसी अन्य प्रदेश के अखबार का स्थानीय संस्करण नहीं बल्कि बेंगलूर ही जिसका मुख्यालय है, ऐसे 'दक्षिण भारत राष्ट्रमत' दैनिक में भी संपादकीय पृष्ठ पर ''ब्लॉग टॉक'' स्तंभ के अंतर्गत रोज दो चुनिंदा विचार, ब्लॉग लेखकों के शामिल किए जाते हैं।
उदाहरण के रूप में मंगलवार 7 अक्टूबर के अंक में प्रकाशित इस स्तंभ की फोटो प्रति यहां दी जा रही है-
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शुरू हो गया दशहरा महोत्सव



कर्नाटक की सांस्कृतिक राजधानी मैसूर में चामुंडी पहाड़ियों पर विराजी भगवती चामुंडेश्वरी के मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और दीप प्रज्ज्वलन के साथ ही मंगलवार को विश्व प्रसिध्द दस दिवसीय दशहरा महोत्सव की शुरुआत हो गई। टुमकूर के सिद्दगंगा मठ के मठाधीश शिवकुमारस्वामीजी ने मंदिर के सामने दीप जलाकर और चामुंडेश्वरी देवी की विशेष पूजा कर इस महोत्सव के शुरू होने की घोषणा की।

दशहरा महोत्सव के उद्धाटन समारोह में पहली बार शामिल होने वाले मुख्यमंत्री बीएस येड्डीयुरप्पा ने भी इस मौके पर पूजा में भाग लिया। परम्परानुसार मैसूर राजघराने के उत्तराधिकारी श्रीकांतदत्त नरसिंहराज वाडेयार ने भी पैलेस में पूजा-अर्चना कर इस महोत्सव की शुरुआत की। उन्होंने पारंपरिक वेषभूषा धारण कर, अमूल्य स्वर्ण सिंहासन पर विराजित होकर पूजा-अर्चना की। यह पूजा-अर्चना इसी तरह इस महोत्सव के अंतिम दिन (विजयादशमी) तक जारी रहेगी। इस आयोजन में वाडेयार राजघराने के सदस्यों के अलावा विशेष आमंत्रित सदस्य भी शामिल होते हैं।

इस महोत्सव के लिए चामुंडी पहाड़ियों पर विशेष साज-सज्जा की गई है। पहाड़ी के नीचे से ऊपर जाने तक के मार्ग पर और ऊपर पहाड़ी पर बने मंदिरों पर विशेष लाइटिंग की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा शहर की अन्य धरोहर इमारतों, शासकीय कार्यालयों के साथ अन्य महलों और इमारतों पर भी रंग-बिरंगी विद्युत साज-सज्जा की गई है।

इस दौरान अगले दस दिनों तक कम से कम 350 सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे और 150 पुरस्कार वितरित किए जाएंगे। दशहरा महोत्सव की विभिन्न उप समितियों ने इन कार्यक्रमों में समाज के सभी वर्गों के लोगों को शामिल करने के लिए प्रयास किए हैं। इस वर्ष पहली बार महिलाओं और बच्चों के लिए ग्रामीण दशहरे का आयोजन किया जा रहा है। इसके साथ ही इस वर्ष योग दशहरा भी मनाया जा रहा है। इस महोत्सव के दौरान राज्य सरकार ने इस वर्ष ओलंपिक में पदक जीतने वाले अभिनव बिंद्रा, सुशील कुमार और विजेन्द्र सिंह को भी सम्मानित करने का फैसला किया है। इनका सम्मान चार अक्टूबर को किया जाएगा। पर्यटकों को लुभाने के लिए 'मैसूर तांगों' का इंतजाम किया गया है जो पर्यटकों को शहर की सैर कराएंगे। शहर में 87 दिवसीय दशहरा प्रदर्शनी का आयोजन शुरू हो चुका है। यह प्रदर्शनी अपनी पूरी भव्यता के साथ दशहरा महोत्सव के बाद भी जारी रहेगी।

पिछले कुछ वर्षों में इस महोत्सव के स्वरूप में काफी परिवर्तन आया है। महोत्सव ने जाति-धर्म की सीमाओं को लांघते हुए एक नया सामाजिक- सांस्कृतिक तानाबाना बुना है। इस महोत्सव में व्यावसायिक प्रायोजक भी बढ़े हैं। साथ ही नई-तकनीकों और आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल भी बढ़ा है। इस उत्सव में इस वर्ष पहली बार पांच अक्टूबर को भारतीय वायु सेना 'एयर शो' का प्रदर्शन करेगी। 10 दिवसीय दशहरा महोत्सव के अंतिम दिन नौ अक्टूबर को जम्बो सवारी के साथ दशहरे की शोभायात्रा शुरू होगी। मुख्यमंत्री बीएस येड्डीयुरप्पा पैलेस परिसर से तीन किलो मीटर लम्बी इस शोभायात्रा को हरी झंडी दिखाकर रवाना करेंगे। महोत्सव को दुर्घटना रहित बनाने के लिए पुलिस-प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। इन दिनों में विशेष सुरक्षा के लिए 5000 अतिरिक्त पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया है। शहर में विभिन्न स्थानों पर लगभग 200 मेटल डिटेक्टर लगाए गए हैं। इनमें हाथ से जांच करने और दरवाजे के स्वरूप वाले मेटल डिटेक्टर शामिल हैं।
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