जागो ! इंडिया जागो

Posted on
  • Monday 28 July 2008
  • by
  • श्रीकांत पाराशर
  • in
  • Labels:


  • अब निश्चय ही भारतवासियों के जागने का समय आ गया है। बिना भयभीत हुए, साहस एवं चतुराई के साथ विषम परिस्थितियों का सामना करने का वक्त आ गया है। सीमा पर सामने दुश्मन दिखाई देता है तो उससे लड़ना आसान होता है परन्तु हमारे बीच रहकर सांप्रदायिक सौहार्द को नष्ट करने का मंसूबा लिए अंदर ही अंदर घात लगाकर अगर देश का दुश्मन हमला करता हो उससे निपटने के लिए सबको एकजुट होना होगा।
    गत मई महीने में राजस्थान में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे जिनमें 65 लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी। अभी परसों बेंगलूर में 8 जगहों पर धमाके हुए जो कि कम प्रभावशाली थे इसलिए एक महिला की ही बलि ली जा सकी और कल शनिवार शाम को अहमदाबाद में जो एक के बाद एक लगातार 16 धमाके हुए उनसे तो पूरा देश कांप उठा। मरने वालों की संख्या 50 का आंकड़ा पार कर लेगी, क्योंकि 100 से ज्यादा तो लोग घायल हैं, जिनमें अनेक लोगों की हालात गंभीर बनी हुई है।
    इस बम कांड से कर्नाटक और गुजरात की भाजपा सरकारें तो दहशत में हैं ही, केन्द्र सरकार के भी हाथ-पांव फूल गए हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल के मुंह से आवाज नहीं निकल रही है। अगर हालात काबू में करने हैं तो केन्द्र एवं राज्य सरकारों के साथ साथ आम जनता को भी चौकन्ना होना पड़ेगा। आतंकवाद की आग देश के अन्य शहरों में नहीं फैले, इसके लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे।
    राजनेताओं को इस अवसर पर अपनी दलगत राजनीति से ऊपर उठना होगा और गंभीरता पूर्वक स्थिति का सामना करना होगा। एक 'जिम्मेदार' केन्द्रीय मंत्री शकील अहमद ने कहा कि कर्नाटक और गुजरात सरकारों की ढिलाई एवं नाकामी के कारण आतंकवादियों को धमाके करने का मौका मिल गया। इन कांग्रेसी मंत्री का कहना था कि केन्द्र ने राज्यों को पहले ही आगाह कर दिया था कि आतंकवादी आने वाले दिनों में दुखद घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि गृह मंत्रालय द्वारा समय-समय पर राज्य सरकारों को ऐसे पत्र देकर आगाह करना एक फैशन सा बन गया है। कोई इनसे कहे कि अगर केन्द्र का खुफिया तंत्र प्रभावशाली है और अपने काम में दक्ष है तो उसे यह भी बताना चाहिए कि किस समयावधि में, किस प्रकार के हमले हो सकते हैं तथा निशाने पर कौन हैं? कोई स्थान विशेष की जानकारी हो अथवा हमले को अंजाम देने के तरीके का आभास हो तो उसकी भी मोटा-मोटी जानकारी राज्य सरकार के खुफिया विभाग तक पहुंचाई जानी चाहिए। तभी तो वे भी कोई खास सुरक्षात्मक कदम उठाने के गंभीर प्रयास कर सकते हैं। आतंकवादी जब अपने मंसूबों में कामयाब हो जाएं तो कहीं केन्द्र पर अंगुली न उठे, महज इस आशंका से अगर केन्द्रीय खुफिया विभाग समय-समय पर 'जनरल सूचना पत्र' अपने राज्यीय साथियों को भिजवाने की औपचारिकता पूरी करता हो तो फिर इस देश का भगवान ही मालिक है। अगर देश के प्रमुख खुफिया तंत्र के पास ही पुख्ता जानकारी नहीं हो तो राज्य खुफिया तंत्र से बहुत ज्यादा उम्मीद करना भी तो उचित नहीं है। औपचारिक चेतावनी पत्रों से क्या भला होने वाला है?
    एक बात और, फिलहाल इसे संयोग ही मान लिया जाए कि तीन माह में अब तक जो विस्फोट हुए वे तीनों प्रदेश भाजपा शासित हैं इसलिए केन्द्रीय मंत्री शकील अहमद ने भी अपनी पार्टी के स्थानीय नेताओं के सुर में सुर मिलाते हुए कह दिया कि जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। परन्तु, जैसा कि संकेत मिल रहे हैं, कल को अगर आतंकियों का अगला निशाना हैदराबाद, मुम्बई जैसे शहर हुए जहां कांग्रेस सरकारें हैं, तो कांग्रेस और केन्द्र के मंत्री अपना मुंह छिपाने कहां जाएंगे? इसलिए इस समय नेताओं को गंदी राजनीति से बाज आना चाहिए और इस गंभीर मामले को व्यापक दृष्टिकोण से सोचना चाहिए।
    भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार आतंकवादियों और खूंखार अपराधियों से निपटने के लिए 'पोटा' कानून लेकर आई थी जिसे संप्रग सरकार ने केवल इसलिए निरस्त कर दिया क्योंकि वह कानून उनके 'विरोधियों' द्वारा लाया गया था। होना यह चाहिए था कि उसमें नई सरकार को जो भी खामियां लग रही थीं, उनका निस्तारण करके उसे दुरुस्त किया जाता और फिर से संशोधित पोटा ( या अन्य किसी नाम से) लागू किया जाता। इससे आतंकवादियों और देशद्रोहियों के हौसले पस्त करने में मदद मिलती तथा देश विरोधी मामलों की जल्दी सुनवाई करवाकर अपराधियों को दंड दिलाया जा सकता। क्योंकि हमारे देश में कानूनी प्रक्रिया इतनी धीमी है, व्यवस्था में इतने 'लूप होल' हैं कि पहले तो अपराधी का अपराध साबित होने में ही वर्षों बीत जाते हैं, बहुत से अपराधी कानूनी दांवपेंच के चलते बच निकलते हैं और जिन्हें सजा हो भी जाती है, उन्हें भी बचने के और मौके मिलते रहते हैं। कई बार निचली अदालतों में बरसों तक सुनवाई के बाद सजा तो दे दी जाती है परन्तु बाद में ऊपरी अदालत में मामला लंबित पड़ा रहता है। यहां तक कि सर्वोच्च अदालत द्वारा सजा सुनाने के बाद भी अपराधियों को, राजनीतिक लाभ के चलते प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष फायदा मिलता रहता है। संसद पर हमला करने के मास्टर माइंड मोहम्मद अफजल को सर्वोच्च न्यायालय फांसी की सजा सुना चुका है। भाजपा जब उसे फांसी देने की मांग करती है तो सब भाजपा विरोधी एकजुट हो जाते हैं और उस मसले को सांप्रदायिकता का जामा पहना देते हैं । मोहम्मद अफजल हो या उससे कुछ कम खूंखार आतंकवादी कोई और हो, जब तक ऐसे मामलों की जांच प्रक्रिया जल्दी पूरी नहीं होगी, कानून अपना काम सख्ती से नहीं करेगा, न्यायपालिका दोष-निर्दोष का फेसला एक समय सीमा में नहीं करेगी और अपराधियों की सजा का क्रियान्वयन नहीं होगा तो फिर देश में आतंकवादी घटनाएं नियंत्रित कैसे होंगी?
    आज देशद्रोही अपराधियों के मन में कोई भय नहीं है, ऐसा स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। जब कानून व्यवस्था एवं न्यायप्रणाली का भय ही नहीं रहेगा तो देश में अव्यवस्था और अराजकता का बोलबाला बढ़ जाएगा। राजनेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवादी तो संसद तक पहुंचने में कामयाब हो गए थे। आज फुटपाथ पर सब्जी बेचने वाले को या बस स्टेंड पर बस का इंतजार कर रहे आम आदमी को निशाना बनाया जा रहा है। कल आतंकवादी का हाथ राजेनेताओं के गिरेबान तक पहुंच जाएगा, तब क्या होगा? इसलिए लोकतंत्र के इन नीति नियंताओं को छिछोरी राजनीति करने से बाज आना चाहिए और देश पर आए संकट का गंभीरता से हल खोजने में जुटना चाहिए।
    जनता को भी अब जागना होगा। हम सब जानते हैं कि देश के हर एक आदमी के साथ एक पुलिसकर्मी नहीं लगाया जा सकता। देश में पुलिस और खुफिया तंत्र की भी अपनी सीमाएं हैं। वह कितनी भी आंखें खोले हुए हो, हर जगह हर नुक्कड़ चौराहे पर आम आदमी की सुरक्षा नहीं कर सकती। अगर जनता खुद जागरूक हो तो पुलिस, प्रशासन और जनता सब मिलकर आतंकवाद को खदेड़ने में कामयाब हो सकते हैं । आज अहमदाबाद व सूरत में नागरिकों की जागरूकता के चलते ही दो-तीन जिंदा बमों को निष्प्रभावी किया जा सका। अगर संदिग्ध लोगों, वस्तुओं और गतिविधियों की जानकारी समय रहते पुलिस को दी जाए तो षडयंत्रकारियों को घटना के क्रियान्वयन के पहले पकड़ा जा सकता है तथा जानमाल को नुकसान से बचाया जा सकता है। इतना ही नहीं, इससे एक बड़ा फायदा यह है कि षडयंत्र रचने वालों का मनोबल टूटता है तथा देश के नागरिकों की एकजुटता परिलक्षित होती है। देश के सभी नागरिक, चाहे वे किसी भी धर्म, सम्प्रदाय और जाति के हों, उन्हें यह मानना होगा कि आतंकवादियों का कोई मजहब या संप्रदाय नहीं होता, इसलिए देशभक्त सभी नागरिकों को सामूहिक रूप से इनसे लड़ना होगा। इन्हें अलग-थलग करना होगा। अगर सबने अपने-अपने दायित्व का निर्वाह नहीं किया तो राजस्थान, कर्नाटक और गुजरात में जो कुछ हुआ वह देश के किसी भी भाग में होगाऔर पूरे देश को इसकी कीमत चुकानी होगी। इसलिए जागो इंडिया जागो।जब कानून व्यवस्था एवं न्यायप्रणाली का भय ही नहीं रहेगा तो देश में अव्यवस्था और अराजकता का बोलबाला बढ़ जाएगा। राजनेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवादी तो संसद तक पहुंचने में कामयाब हो गए थे। आज फुटपाथ पर सब्जी बेचने वाले को या बस स्टेंड पर बस का इंतजार कर रहे आम आदमी को निशाना बनाया जा रहा है। कल आतंकवादी का हाथ राजेनेताओं के गिरेबान तक पहुंच जाएगा, तब क्या होगा?

    0 comments: