दशहरा जंबो सवारी के 'हाथी'.

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  • Thursday 24 September 2009
  • by
  • श्रीकांत पाराशर
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  • प्रसिध्द मैसूर दशहरे का नाम आते ही हाथियों का जिक्र होना स्वाभाविक हो जाता है। दशहरे की जंबो सवारी में इन हाथियों को शामिल किया जाता है। 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में हाथियों को विशेष सम्मान एवं स्थान प्राप्त है। दशहरे के लिए हाथियों का चुनाव कुछ दिनों पहले से प्रारंभ कर दिया जाता है। चुनाव करने से पहले वन अधिकारी इन हाथियों की शारीरिक क्षमता के साथ ही इनकी भावनात्मक, बौध्दिक क्षमता परखते हैं और इनकी शोर करने एवं शोर सहने की क्षमता का आंकलन भी किया जाता है। पशु चिकित्सक तनावपूर्ण स्थितियों में इनके धैर्य का परीक्षण और हौदा रखने की योग्यता का भी आंकलन किया जाता है।
    इसके बाद इन्हें विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। प्रशिक्षण के पश्चात् एक विशेष हाथी का चुनाव किया जाता है जो सभी मापदंडों पर खरा उतरे। इस हाथी का नामकरण अंबारी के रूप में होता है। अंबारी वह हाथी है जिस पर लगभग 750 किलो का 'स्वर्ण हौदा' रखा जाता है। इस हाथी को शोभायात्रा में सबसे अलग दिखने के लिए विशेष तरह से सजाया जाता है। आप को जानकर आश्चर्य होगा कि पिछले कई वर्षों से एक ही हाथी को 'अंबारी' हाथी होने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है, जो अब बूढ़ा हो गया है। इतिहासकारों के अनुसार इन हाथियों के चुनाव में मैसूर के राजा काफी उत्साहित रहते थे। वर्ष 1925 में राजा ने हाथियों का चुनाव करने के लिए अपने विशेष व्यक्ति को 400 रुपए के खर्च पर असम और बर्मा के क्षेत्रों की ओर रवाना किया गया था। यह व्यक्ति वहां महीनों रहने के पश्चात् कुछ हाथियों का चुनाव करके मैसूर लेकर आता था। एक बार राजा कृष्णराजा वाडेयार ने लकड़ी के एक व्यापारी से 10 हाथियों को केवल 30 हजार रुपए में खरीदने से मना कर दिया था क्योंकि उनमें से एक भी हाथी 'अंबारी हाथी' बनने की क्षमता नहीं रखते थे। फिर उन्होंने बर्मा के जंगलों में अपने एक आदमी को हाथियों के शिकार के लिए भेजाजहां से वह व्यक्ति हाथियों की तस्वीर खींचकर राजा को भेजता था। तस्वीर देखकर राजा तय करते थे कि उस हाथी को लाना है कि नहीं। इन सभी घटनाओं से 'अंबारी' हाथी की अहमियत का पता चलता है।
    हाथियों की बढ़ती उम्र अब समस्या बनती जा रही है। जंबो सवारी के कई हाथी उम्र दराज हो गए हैं और उनकी जगह नए हाथियों की खोज जारी है। 'स्वर्ण हौदा' लेकर चलने वाले हाथी बलराम की उम्र 50 वर्ष हो चुकी है और उसके साथी श्रीराम 51, मैरीपर कांति 68, रेवती 54 और सरला 64 वर्ष के हैं।
    उनके स्थान पर नए हाथियों की खोज काफी मुश्किल हो रही है क्योंकि जंगल की आबोहवा से परिचित हाथियों को 'शहरी जंगल' के वातावरण से परिचित करना मुश्किल काम है।

    6 comments:

    महेन्द्र मिश्र said...

    मैसूर दशहरे के बारे में अच्छी जानकारी देने के लिए आभार.

    Kulwant Happy said...

    बहुत अद्धुत लेख है आपका। आपका अनुभव काफी है इस क्षेत्र में इस लिए..अद्भुत तो होगा ही जी। बहुत खूब लिखा है}}}जानकारी के लिए धन्यवाद

    राज भाटिय़ा said...

    बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने मेसूर के दशहरे के बारे धन्यवाद

    शोभना चौरे said...

    रश्मिजी के ब्लॉग से आपके ब्लॉग पर आना हुआ |मै भी बंगलौर में रहती हूँ पिछले कुछ महीनों से इस अखबार के बारे में जानकारी नहीं थी यहाँ कोई हिंदी अखबार असल रूप में है यह जानकर अच्छा लगा |
    मैसूर दशहरा कि जानकारी अच्छी लगी |

    Akanksha Yadav said...

    आपकी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी..आपने बड़ी शानदार जानकारियां दी हैं. इसे हम साभार 'उत्सव के रंग' पर प्रकाशित कर रहे हैं.

    www.utsavkerang.blogspot.com
    सादर,

    Richa P Madhwani said...

    धन्यवाद