प्यार का रंग लगा देना

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  • Sunday 31 August 2008
  • by
  • श्रीकांत पाराशर
  • in
  • राजनीति पर संपादकीय और अन्य लेख लिखते-लिखते जब मन करता है कि कभी-कभी कुछ इससे अलग कोशिश भी करनी चाहिए तब ऐसी कोई रचना लिखी जाती है।

    उनकी मोहब्बत का

    ऐसा वैसा ना सिला देना
    जरा प्यार से मना करना
    गुस्से में ना ठुकरा देना।

    होली के दिन किसी फसाद में

    जिन्होंने खोया कोई परिजन
    उनके बदरंग चेहरों पर कोई
    प्यार का रंग लगा देना।

    लड़ने वाले तो यहां
    बहुत मिल जाएंगे मेरे दोस्त
    दो दुश्मनों के बीच की दूरियां
    मिटा सको तो मिटा देना।

    समाजसेवी होने का दंभ
    तो भरते हैं बहुत लोग
    मगर उन्हें भी कठिन लगता है
    किसी भूखे को रोटी खिला देना।

    अपने बच्चे के लिए रोज

    खरीदते हो ढेरों खिलौने
    एक खिलौना किसी
    गरीब के बच्चे को दिला देना।

    5 comments:

    Anil Pusadkar said...

    garib to khud khilauna hota hai taqdeeR ka,bahut achha likha apne ,apki bhawnawon ka naman karta hun

    सचिन मिश्रा said...

    Bahut accha likha hai.

    शोभा said...

    होली के दिन किसी फसाद में
    जिन्होंने खोया कोई परिजन
    उनके बदरंग चेहरों पर कोई
    प्यार का रंग लगा देना।
    सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

    Anonymous said...

    होली के दिन किसी फसाद में
    जिन्होंने खोया कोई परिजन
    उनके बदरंग चेहरों पर कोई
    प्यार का रंग लगा देना।

    Shrikant Ji vakai dil ko chhu lene vali line hai. Kavita to aapke mukharvind se suna hi tha..., padne par aur achchha laga.
    Badhai

    प्रदीप मानोरिया said...

    समाजसेवी होने का दंभ
    तो भरते हैं बहुत लोग
    मगर उन्हें भी कठिन लगता है
    किसी भूखे को रोटी खिला देना।
    very nice
    please visit http://manoria.blogspot.com and kanjiswami.blog.co.in