राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा है हिन्दी

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  • Thursday 18 September 2008
  • by
  • श्रीकांत पाराशर
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  • 'राष्ट्र भाषा हिन्दी, जिसे सरकारी भाषा में राजभाषा कहा जाता है, विभिन्न भाषा-भाषियों वाले भारत को एक सूत्र में पिरोने का काम करती है । उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक संपर्क भाषा की अगर कोई भूमिका निभाती है तो वह हिन्दी हैक्योंकि हिन्दी ही ऐसी भाषा है जिसे अहिन्दीभाषी भी टूटी-फूटी तो बोल ही लेता है और कम-ज्यादा समझ भी लेता है। अंग्रेजी उत्तर भारत में कम पढ़े लिखे लोगों को समझ में नहीं आ सकती इसलिए संपर्क की भाषा अंग्रेजी नहीं, हिन्दी ही है। हिन्दी एक ऐसी भाषा है जिसकी प्रतिस्पर्धा किसी भाषा से नहीं है बल्कि वह भारत की विविध भाषाओं को साथ लेकर चलने की क्षमता रखती है। वह राष्ट्र की विविध क्षेत्रीय भाषाओं के साथ खुद का विकास करने में सक्षम है। वह अन्य भाषाओं की बड़ी बहन है, उनकी सौतन नहीं है। यह तो वोट की राजनीति के चलते नेतागण भाषा की दीवार खड़ी करने का काम करते हैं अन्यथा आम जनता के मन में हिन्दी के प्रति किसी प्रकार का विद्वेष नहीं है।' यह विचार व्यक्त किए 'दक्षिण भारत' हिन्दी दैनिक के संपादक श्रीकांत पाराशर ने। वे यहां सरकारी उपक्रम इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स इंडिया (ईपीआई) द्वारा आयोजित हिन्दी दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।

    श्री पाराशर ने कहा कि हिन्दी का बड़ा नुकसान उन लोगों ने किया है जो इसे जटिल बनाए रखने के पक्षधर हैं और अपनी विद्वता का सिक्का जमाए रखने के लिए इसे आम आदमी की पसंदीदा जुबान बनने देने में बाधक बन रहे हैं। हिन्दी जितनी सरल होगी, बोलचाल की भाषा होगी उतनी ही ज्यादा गैर हिन्दीभाषियों द्वारा अपनाई जाएगी। भाषा कभी भी किसी को जबरन नहीं सिखाई जा सकती। हिन्दी के प्रति जैसे जैसे लगाव बढ़ेगा, प्रेम बढ़ेगा, भाषा भी बढ़ेगी, ज्यादा प्रचलित होगी।

    मुख्य अतिथि पाराशर ने कहा कि आज तो हिन्दी बाजार की भाषा हो रही है इसलिए विदेशी कंपनियां भी अपने उत्पाद बेचने के लिए हिन्दी का सहारा लेती हैं। यह स्वाभाविक है। जब किसी को आर्थिक लाभ होगा तो भाषा से वह मुंह नहीं मोड़ना चाहेगा। हिन्दी अगर रोजगार उपलब्ध कराएगी, हिन्दी अगर रोजी-रोटी का  साधन बनेगी तो वह जन जन की भाषा बनने लगेगी। लोगों ने उसे माथे की बिन्दी कह कह कर अहम की लड़ाई के लिए एक कारण बना दिया और उसे दिलों में नहीं बैठने दिया। माथे की बिन्दी कह देने भर से उसे उच्च स्थान नहीं मिल जाता। उसे वह स्थान दिलाने के लिए हम कितने ईमानदार प्रयास करते हैं? पाराशर ने कहा कि हिन्दी भाषा के प्रति खुद हिन्दीभाषियों को ही गर्व नहीं होता बल्कि  वे अंग्रेजी बोलकर  प्रसन्न होते हैं तो दूसरों को दोष क्यों दिया जाए?

    उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब कोई हिन्दी भाषा का चैनल, हिन्दीभाषी प्रदेश में, किसी हिन्दीभाषी से हिन्दी में कोई सवाल करता है, तो वहां का व्यक्ति हिन्दी में किए गए सवाल का जवाब अंग्रेजी में गर्व से देता है। मजे की बात यह है कि वह गलत अंग्रेजी में जवाब देता है, और वह भी अटक अटक कर बोलता है परन्तु बोलता अंग्रेजी में है क्योंकि हिन्दी में उसे शर्म आती है। जब हिन्दीभाषियों की मानसिकता ऐसी है तो फिर जिनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं है उन्हें किस बात का दोष दिया जाए? दक्षिण भारत में तो हिन्दी भाषा के अनेकानेक मूर्धन्य विद्वान हुए हैं। उन्होंने कहा, हिन्दी को कामकाज में, बोलचाल में अपनाएं मगर प्यार से, स्वेच्छा से। आंदोलन,  प्रदर्शन,   मे,,मोरेन्डम  या  अधिसूचना से किसी को हिन्दी नहीं सिखाई जा  सकती। इसका विकास व्यक्तिगत स्तर पर करना होगा। हम अपने अपने स्तर पर इसके लिए प्रयास करें। एक एक व्यक्ति का योगदान जुड़ेगा तो उसका परिणाम निश्चय ही सुखद आएगा।

    कार्यक्रम की अध्यक्षता कवि एवं पेशे से वैज्ञानिक डॉ. आदित्य शुक्ल ने की। उन्होंने एक कविता के माध्यम से भारत की विविध भाषाओं के साथ हिन्दी का कैसा अटूट संबंध है तथा कैसे यह भाषा दूसरी भाषाओं के साथ विकसित होती है, इस भावना को व्यक्त किया।

    इस अवसर पर ईपीआई के उप महाप्रबंधक के मनोहरन, एन विभाकरन भी मौजूद थे। मुख्य अतिथि श्री पाराशर, डॉ. शुक्ल ने हिन्दी भाषा संबंधी प्रतिस्पर्धाओं के विजेताओं को नकद पुरस्कार एवं स्मृति चिन्ह भेंट किए। हिन्दी दिवस के आयोजन का पूरा श्रेय संस्थान के वरिष्ठ वित्तीय प्रबंधक हरिकृष्ण सक्सेना को जाता है जिनके प्रयासों से हर वर्ष हिन्दी दिवस मनाया जाता है।

    4 comments:

    शोभा said...

    बहुत अच्छा लेख लिखा है. बधाई.

    Udan Tashtari said...

    अच्छी रपट.

    seema gupta said...

    "Thanks for detailed description, great artical to read on great subject"

    Fonts of the post are overlaping, pls dekh lain, it is creating difficuly in reading properly"

    Regards

    Dev said...

    "Rastra ko ek shutra me pirone wali bhasha hai Hindi"

    Sir aapka har lekh bahut achchha hai..aur Hindi wala bahut achchha laga mujhe....

    Regards

    http://dev-poetry.blogspot.com/