अपनी दोनों आंखें चढ़ा दीं भगवान को
Posted on Thursday, 4 September 2008 by श्रीकांत पाराशर in
इसे अंधविश्वास कहा जाए या आस्था की पराकाष्ठा, परन्तु है यह सच्ची घटना। कर्नाटक के बागलकोट जिले के अडगल गांव के एक किसान मुदुकप्पा इलप्पा कर्दी नामक व्यक्ति ने गत 28 अगस्त को अपने ही चाकू से अपनी दायीं आंख निकाल कर भगवान शिव की मूर्ति के चरणों में रख दी। उस दिन वहां गांव में स्थित शंकरनारायण स्वामी मठ में यह भक्त आया और वहां उपस्थित लोग कुछ समझ पाते इससे पहले ही उसने चाकू निकाला तथा तुरन्त अपनी दायीं आंख निकालकर मूर्ति को समर्पित कर दी। उसे तुरंत अस्तपाल ले जाया गया परन्तु देर हो चुकी थी। वह एक आंख खो चुका था।अभी गत दो सितम्बर को 41 वर्षीय यही शिव भक्त मुदुकप्पा फिर मंदिर में गया और उसने अपनी दूसरी आंख (बायीं) भी उसी अंदाज में भगवान को चढ़ा दी। कुरूबा जाति के इस छोटे से किसान के 8 संतानें हैं और वह मुश्किल से परिवार का पेट पालता है। अब वह पूरी तरह नेत्रहीन हो गयाहै। उसकी नेत्र ज्योति आने की कोई संभावना नहीं है। उसकी पत्नी ने भी इसे भगवान शिव का आदेश बताते हुए इसका समर्थन किया है। आज हमारे देश में ऐसी कितनी ही घटनाएं होती होंगी, जिनमें से इक्का-दुक्का प्रकाश में आती हैं। इसे जागरूकता या शिक्षा की कमी कहा जाए या कुछ और समझ में नहीं आता। परन्तु ऐसा होता है। थमने का नाम नहीं लेती ऐसी घटनाएं।
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2 comments:
धन्य हैं ये अन्धविश्वासी!!
कितने अफ़सोस की बात है की अहिंसा के देश में अपने और दूसरों के प्रति हिंसा न सिर्फ़ आम है बल्कि समय-समय पर गरीब-अनपढ़ लोग इसे धर्म-संगत भी समझ बैठते हैं. बेहतर हो की इन लोगों को उनके परिवार, विशेषकर बच्चों के भविष्य के प्रति सजग किया जाए.
आश्चर्य है की बात-बेबात पर संघर्ष, हिंसा, आगज़नी और धरने पर बैठ जाने वाले अपनी ऊर्जा का दशमांश भी अंधविश्वास निवारण पर नहीं खर्च करते हैं.
आपका धन्यवाद जो आपने ऐसा विषय उठाया!
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