बेबस और बेहाल है बिहार

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  • Monday 1 September 2008
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  • श्रीकांत पाराशर
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  • बिहार में जो बाढ आई है, उसकी भयावहता का तो ठीक से वर्णन भी नहीं किया जा सकता। पहले से ही आर्थिक रुप से पिछड़े हुए इस प्रदेश को कोसी नदी ने बर्बादी के कगार पर ला खड़ा किया है। प्रदेश के अनेक जिलों में त्राहि-त्राहि मची हुई है। बताया जा रहा है कि 25 लाख लोग अभी भी बाढ में फंसे हुए हैं। कई-कई दिनों से लोग अपने नन्हें बच्चों को गोद में उठाए, पानी की उफनती धाराओं के बीच किसी पेड़ को पकड़े खड़े हैं। कहीं छतों पर एक साथ सैकड़ों लोग ठसमठस बैठे हुए आसमान की ओर टकटकी लगाए हुए हैं कि कब कोई हेलिकॉप्टर उनकी मदद के लिए भगवान बनकर आएगा। कहीं हेलिकॉप्टर से खाने-पीने की सामग्री फेंकी भी जा रही है तो उसमें से आधी सामग्री पानी में गिर कर बर्बाद हो रही है और जो आधी-अधूरी सामग्री भूखी-प्यासी जनता के बीच पहुंच रही है उस पर लोग इस तरह टूट रहे हैं जैसे उन्होंने कभी कुछ खाया ही न हो। कई इलाकों में तो छोटे-छोटे बच्चों के मुंह में 5-7 दिनों से अन्न का एक दाना भी नहीं गया है। जो लोग इस बाढ से घिरे हैं उनकी दयनीय स्थिति के बारे में कितना कुछ भी लिख दो, कम है। टीवी चैनलों पर वहां के जीवंत हालात देखकर और अखबारों में समाचार पढकर, किसी का पत्थर दिल हो तो वह भी पिघल जाए, इतने चिंताजनक एवं मार्मिक हालात बिहार के कई जिलों के हैं।
    केन्द्र सरकार ने बिहार के बाढ पीड़ितों की मदद के लिए एक हजार करोड़ रुपए देने की घोषणा की। राज्य सरकार भी अपने स्तर पर सब कुछ करने की कोशिश में दिखाई देती है। हम किसी की भी मंशा पर आशंका नहीं करते परन्तु इसमें कोई दो राय नहीं कि जब आग लगती है तब हम कुआं खोदना शुरु करते हैं। हम भारतीयों की यह प्रवृत्ति जब तक नहीं बदलेगी तब तक हालात भी नहीं बदलेंगे। चाहे बाढ हो या सूखा, केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार, स्थिति से निपटने के न तो पूर्व इंतजाम किए जाते हैं और न ही भविष्य के लिए ठोस समाधान ढूंढने की कोशिश होती है। प्राकृतिक आपदा में क्या किया जा सकता है, इतना कह कर हर प्रशासन पल्ला झाड़ लेता है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने वर्षों तक राज्य पर शासन किया। आज वे सत्ता से बाहर हैं तो हेलिकॉप्टर से बाढग्र्रस्त इलाकों का मुआयना कर नीतीश कुमार को भला-बुरा कह रहे हैं, उन्हें नाकारा साबित करने पर तुले हैं परन्तु उन्होंने खुद ने अपने शासनकाल में बिहार और बिहारवासियों को क्या दिया? इसलिए यह समय राजनीति करने का नहीं है फिर भी सत्ता के भूखे लोग अपनी आदतों से बाज नहीं आते।
    कोसी नदी में पहली बार बाढ नहीं आई है। हर साल वहां बाढ़ के हालात बनते हैं। परन्तु यह बात सही है कि इस बार बिहार नेपाल सीमा पर भीमनगर तटबंध में लगभग तीन किमी की दरार पड़ गई जिससे कोसी नदी ने अपना रास्ता बदल लिया। तीन सौ साल पहले जिस रास्ते यह नदी बहती थी, वह रास्ता उसने पकड़ लिया और बिहार में तबाही मच गई। कोसी नदी के तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग लगभग हर वर्ष बाढ के हालात से जूझते हैं क्योंकि नेपाल की ओर से अतिरिक्त पानी छोड़ा जाता हैऔर वह कोसी नदी में बाढ लेकर आता है। केन्द्र सरकार इससे अनभिज्ञ नहीं है परन्तु लगता नहीं कि इस आपदा से निपटने के लिए उसने खास परवाह की हो तथा नेपाल से गहन चर्चा कर कुछ समाधान ढूंढने का ईमानदार प्रयास किया हो। कोसी नदी में जल स्तर बढता रहा, बाढ का पानी कहर ढाता रहा और शुरु के दो दिन तक तो केन्द्र और स्थानीय प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। बाद में प्रयास प्रारंभ हुए परन्तु तब तक स्थिति बिगड़ चुकी थी, इसलिए ये प्रयास भी नाकाफी सिध्द हुए। अब सेना ने कमान संभाली है, केन्द्र भी जागा है तथा राज्य सरकार सीमित साधनों के बल पर इस विकट संकट से जूझने की कोशिश कर रही है। समय केवल प्रशासन की खामियां ढूंढने का भी नहीं है क्योंकि इससे बाढ में फंसे लोगों की कोई मदद नहीं होगी बल्कि अब सभी की कोशिश यह होनी चाहिए कि बाढ प्रभावितों की मदद कैसे की जाए।
    देशभर में लाखों बिहारी हैं जो बिहार से बाहर बसे हैं और रोजी-रोटी कमा रहे हैं। उनमें से हजारों लोग ऐसे हैं, जो समध्द हैं। बहुत से लोगों का अच्छा व्यवसाय है तो अनेक मल्टी नेशनल कंपनियों में ऊंचे ओहदों पर हैं। बहुत से लोग सरकारी-अर्ध सरकारी संस्थानों में उच्च पदों पर कार्यरत हैं जिन्हें काफी सम्मानजनक वेतन मिलता है। इन सब बिहारी बंधुओं को चाहिए कि खुले हाथ से अपने भाइयों की मदद के लिए आर्थिक सहयोग दें। दूसरी बात, बिहार कोई भारत से बाहर नहीं है। वह भी भारत का ही एक प्रदेश है। हमारे लोग तो संकट काल में दूसरे देश के लोगों की मदद करने में पीछे नहीं रहते फिर हमारे ही देश के लाखों लोग बाढ की चपेट में हैं तो उनकी मदद करने में भला पीछे क्यों रहना चाहिए? इसलिए मदद केवल बिहारी ही करें ऐसा नहीं हर समृध्द भारतवासी को आगे आना होगा। बाढ का पानी तो दो-तीन दिन में या सप्ताह भर में उतर जाएगा परन्तु असली कठिनाई तभी शुरु होगी। जो लोग पानी में बह गए, वे तो बह गए जो जिंदा बचे हैं उनके लिए शिविर लगाकर उनके भोजन-पानी, दवाइयां, पहनने-ओढने के कपड़े आदि की व्यवस्था करनी होगी। यह काम व्यापक स्तर पर किया जाना है। सरकारी-गैर-सरकारी संगठन इसमें जुटेंगे परन्तु जहां लाखों लोग बेघर हो गए हों, वहां कितना भी राहत कार्य हो, कम ही होगा। इसलिए होना यह चाहिए कि अलग-अलग प्रदेशों से बाकायदा कार्यकर्ताओं की टीमें प्रभावित इलाकों में जाएं। वहां के वास्तविक सेवाकार्य करने वाले स्वयंसेवी संगठनों का सहयोग लेते हुए उनके साथ खुद मिलकर बाढ पीड़ितों की जरुरतों के मुताबिक विधिवत ढंग से राहत कार्य करें तो काफी अच्छा काम हो सकता है। आर्थिक सहयोग देने वाले बहुत मिल जाएंगे परन्तु वे अपना अंशदान तभी देंगे जब उन्हें लगेगा कि उनकी राशि का लाभ वास्तविक प्रभावितों को अवश्य मिलेगा। बाढ का पानी उतरने के बाद असली राहत की जरुरत होगी। संगठनों को चाहिए कि मिलजुलकर एक कार्ययोजना बनाएं और उसी के अनुरुप काम करें तथा इस बात का भी ध्यान रखें कि एकत्र की जाने वाली राशि का दुरुपयोग न हो। अगर निर्णय लेने में ही पखवाड़ा बीत गया तो उससे भी ध्येय सफल नहीं होगा। काम करना है तो कमर तत्काल कसनी चाहिए। बिहार की भीषण बाढ में फंसे हैं वे हमारे ही भाई-बहन हैं, यह सोचकर जो भी, जिस तरह से भी मदद कर सकता है, उसे उसी रुप में आगे आना चाहिए।

    5 comments:

    आशीष कुमार 'अंशु' said...

    इस बार बाढ़ ने निशब्द कर दिया

    Dr. Chandra Kumar Jain said...

    वास्तव में बिहार में
    बाढ़ से हुई तबाही का मंज़र
    दर्दनाक है. आपने जो तस्वीर खींची है
    उसमें विवरण से अधिक संवेदना और सुझाव का
    रचनात्मक पक्ष उभर रहा है. सच है कि ऐसे विषम
    समय में ही वसुधैव कुटुम्बकम के उद्घोषक
    भारतवासियों की परख की चुनौती सामने आती है.
    ===================================
    पत्रकारिता और हिन्दी-सेवा में
    आपके अवदान ने अभिभूत किया.
    आभार
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

    Anil Pusadkar said...

    sahi kaha aapne,aag lagne par kuan khodne ki aadat si ho gayi hai hum logon ko,

    PREETI BARTHWAL said...

    सच में बिहार में बाढ से जो हालात हो गये है टीवी
    में देखते है तो आंखे भर आती हैं। क्या होगा कुछ समझ ही नही आता ।

    श्रीकांत पाराशर said...

    Chandrakantji,aapki pratikriya padhkar laga ki blog par likhte rahna chahiye, isse achhe achhe buddhijeeviyon se parichay hota hai. main to blog par naya naya hun. Anilji aur Preeti bhi meri post regular padhte hain aur apni rai dete hain.Ashishji ne bhi post padhi, sabka hriday se aabhar. main bhi aapki post par jata hun, mujhe achha lagta hai.